कार्तिकेय, जिन्हें मुरुगन, स्कंद, या सुब्रह्मण्य भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र के रूप में पूजे जाते हैं। वे विशेष रूप से तमिलनाडु, केरल, और अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों में प्रमुख देवता माने जाते हैं। इसके अलावा, श्रीलंका और मलेशिया जैसे देशों में भी उनकी पूजा होती है।
लेकिन, जब उत्तर भारत की बात आती है, तो कार्तिकेय की पूजा अपेक्षाकृत कम होती है। इस सवाल का उत्तर कई सांस्कृतिक, धार्मिक, और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से समझा जा सकता है।
कंटेंट की टॉपिक
1. भौगोलिक विभाजन और सांस्कृतिक प्रभाव
भारत का सांस्कृतिक और धार्मिक विभाजन बहुत विविध है। दक्षिण भारत में कार्तिकेय की पूजा बहुत पुरानी और गहरी है। तमिलनाडु में मुरुगन भगवान को विशेष रूप से पूजा जाता है और उन्हें तमिल संस्कृति का अभिन्न अंग माना जाता है। वहीं उत्तर भारत में मुख्य रूप से विष्णु, राम, कृष्ण, शिव, और देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। उत्तर भारत में कार्तिकेय की पूजा बहुत सीमित है, और इसके पीछे का कारण ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विभाजन हो सकता है।
2. पुराणों में विवरण का अंतर
कार्तिकेय के बारे में अधिकांश विवरण स्कंद पुराण और महाभारत जैसे ग्रंथों में मिलता है, लेकिन ये ग्रंथ उत्तर भारत में उतने प्रचलित नहीं थे जितने कि विष्णु पुराण, शिव पुराण, या देवी पुराण। स्कंद पुराण में कार्तिकेय का प्रमुखता से वर्णन किया गया है, लेकिन यह पुराण मुख्यतः दक्षिण भारत में प्रचलित है। इसीलिए, उत्तर भारत में कार्तिकेय की पूजा का प्रचलन धीरे-धीरे कम हो गया।
3. रामायण और महाभारत में भूमिका
रामायण और महाभारत भारतीय धर्म और संस्कृति के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ माने जाते हैं। रामायण में भगवान राम और महाभारत में भगवान कृष्ण का प्रमुखता से उल्लेख है। ये दोनों ग्रंथ उत्तर और मध्य भारत में विशेष रूप से प्रचलित हैं। इन ग्रंथों में कार्तिकेय की भूमिका सीमित है, और शायद इसी कारण वे उत्तर भारतीय धार्मिक परंपराओं में प्रमुख नहीं बन सके।
4. उत्तर भारतीय मंदिर वास्तुकला और पूजा पद्धति
उत्तर भारत में मंदिरों की वास्तुकला और पूजा पद्धतियाँ बहुत हद तक वैष्णव और शैव परंपराओं से प्रभावित हैं। इनमें विष्णु, शिव, पार्वती, और गणेश की पूजा प्रमुख होती है। हालांकि कार्तिकेय को गणेश के भाई के रूप में माना जाता है, फिर भी उत्तर भारत में उनकी पूजा की परंपरा नहीं बन सकी।
5. गणेश पूजा का महत्व
उत्तर भारत में गणेश जी की पूजा बहुत महत्वपूर्ण है। हर शुभ कार्य की शुरुआत गणेश पूजा से की जाती है। गणेश चतुर्थी, विशेष रूप से महाराष्ट्र और उत्तर भारत में, बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। चूंकि गणेश को ही प्रथम पूज्य माना जाता है, कार्तिकेय की पूजा का उतना महत्व नहीं हो सका।
6. भक्तिमार्ग और संत परंपराएँ
उत्तर भारत में भक्तिमार्ग की परंपरा बहुत गहरी है, और संतों ने राम, कृष्ण, और शिव की भक्ति को प्रमुखता दी है। संत तुलसीदास, सूरदास, मीरा बाई, और कबीर जैसे संतों ने भगवान राम और कृष्ण की भक्ति पर अधिक जोर दिया। इससे कार्तिकेय की पूजा का प्रसार उत्तर भारत में सीमित हो गया।
7. सांस्कृतिक आदान-प्रदान
भारतीय संस्कृति में दक्षिण और उत्तर का आदान-प्रदान बहुत सीमित रहा है। हालांकि दक्षिण भारतीय मंदिरों और परंपराओं का प्रभाव उत्तर भारत पर पड़ा है, लेकिन कार्तिकेय की पूजा की परंपरा उत्तर में विकसित नहीं हो पाई। इसके विपरीत, दक्षिण भारत में राम, कृष्ण, और शिव की पूजा का महत्व है, लेकिन वहां की प्रमुखता मुरुगन की पूजा में ही रही है।
8. समाज और लोक कथाएँ
कार्तिकेय की पूजा की सीमितता का एक कारण यह भी हो सकता है कि उनकी पूजा से जुड़ी लोक कथाएँ और कहानियाँ उत्तर भारत में उतनी लोकप्रिय नहीं हैं। जबकि दक्षिण भारत में मुरुगन की कहानियाँ और लोकगीत बहुत लोकप्रिय हैं, उत्तर भारत में उनकी कहानियाँ और लोकधार्मिक तत्व नहीं के बराबर हैं।
9. धार्मिक पुनर्जागरण और आधुनिक काल
आधुनिक काल में भी धार्मिक पुनर्जागरण और समाज सुधार के आंदोलनों ने राम, कृष्ण, और शिव की पूजा को अधिक महत्व दिया है। आधुनिक संत और धर्मगुरु जैसे कि रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, और अन्य ने उत्तर भारत में भक्ति और ध्यान की परंपराओं को मजबूत किया। इससे कार्तिकेय की पूजा का महत्व और कम हो गया।
10. वैदिक और पौराणिक विचारधाराएँ
वैदिक साहित्य में कार्तिकेय का उल्लेख मिलता है, लेकिन वे वहां भी प्रमुख देवता नहीं हैं। पौराणिक काल में ही उनकी पूजा का विस्तार हुआ। हालांकि वे युद्ध के देवता और ज्ञान के प्रतीक माने जाते हैं, लेकिन उत्तर भारत में पौराणिक विचारधाराओं के आधार पर मुख्य रूप से अन्य देवताओं की पूजा होती रही है।
11. समाजिक संरचना और जातीय पहचान
उत्तर भारत में समाजिक संरचना और जातीय पहचान भी धार्मिक पूजा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उदाहरण के लिए, कुछ जातियों और समुदायों में विशेष देवताओं की पूजा की जाती है। कार्तिकेय की पूजा दक्षिण भारत के कुछ समुदायों और जातियों में अधिक प्रचलित है, जबकि उत्तर भारत में वैष्णव और शैव परंपराएँ ही प्रमुख हैं।
12. संबंधित पर्व और त्योहार
उत्तर भारत में कार्तिकेय से जुड़े त्योहार और पर्व भी कम ही मनाए जाते हैं। उनके मुख्य पर्व, जैसे थाईपूसम, कावड़ी, और स्कंद षष्ठी, दक्षिण भारत में बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं। उत्तर भारत में ऐसे पर्वों की अनुपस्थिति में कार्तिकेय की पूजा का प्रसार और भी सीमित हो गया है।
13. अन्य धार्मिक प्रभाव
उत्तर भारत में बौद्ध धर्म, जैन धर्म, और सिख धर्म का भी प्रभाव रहा है, जिसने धार्मिक पूजा पद्धतियों को प्रभावित किया है। इन धर्मों के अनुयायियों ने मुख्य रूप से भगवान बुद्ध, महावीर, और गुरु नानक जैसे महापुरुषों की पूजा को अधिक महत्व दिया है। इससे कार्तिकेय की पूजा की परंपरा कमजोर पड़ गई।
14. शिक्षा और आधुनिकता का प्रभाव
आधुनिक शिक्षा और पश्चिमी विचारधाराओं के प्रसार ने भी पारंपरिक पूजा पद्धतियों को प्रभावित किया है। नए विचार और धर्मनिरपेक्षता के प्रसार के कारण भी उत्तर भारत में कार्तिकेय की पूजा कम हो गई है। जबकि दक्षिण भारत में पारंपरिक धार्मिक अनुष्ठान अभी भी अधिक प्रचलित हैं।
निष्कर्ष
कार्तिकेय की पूजा का उत्तर भारत में सीमित होना कई सांस्कृतिक, धार्मिक, और ऐतिहासिक कारणों का परिणाम है। दक्षिण भारत में वे एक प्रमुख देवता हैं, लेकिन उत्तर भारत में उनकी पूजा का प्रचलन कम है। इसके पीछे कई सामाजिक, भौगोलिक, और धार्मिक कारण हैं, जो कि भारतीय समाज की विविधता और धार्मिक परंपराओं के विविध रूप को दर्शाते हैं।